September 14, 2024 3:57 am

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विवाहेत्तर संबंधों की ‘द डॉर्क रूम’ में तसवीर उकेरी थी ‘मालगुडी डेज’ के लेखक आरके नारायण ने

हाइलाइट्स

‘द गाइड’ आरके नारायण का बेहद चर्चित उपन्यास है. विदेशों में भी बहुत पॉपुलर हुआ.
आरके नारायण के उपन्यास पर ही देवानंद की ‘गाइड’ फिल्म बनी, जो सुपरहिट हुई.
आज की पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा ‘मालगुडी डेज’ सीरीयल देख कर बड़ा हुआ है.

RK Narayan Birth Anniversary: इन दिनों एक टर्म कुछ ज्यादा ही चर्चा में है- ’40 इज न्यूज 20′. जो 20 के ही हैं, उन्होंने शायद ना सुना हो, लेकिन जो औरत-मर्द 35 से 45 के बीच के हैं, वे इस बात से कतई इनकार नहीं करेंगे कि उनका दिल रोमानी हो रहा है. उन्हें फिर से इश्क हो रहा है. वे अपने पार्टनर के अलावा बाहर की तरफ देखने लगे हैं. इस बात से उलट कि हमारे संस्कार ऐसे नहीं हैं. इस बात से उलट कि किसी को पता चल गया तो लोग क्या कहेंगे?

सवाल ये नहीं है कि लोग क्या कहेंगे, सवाल ये है कि क्या आप जानते हैं कि ऐसी चीजें समाज में कब से चल रही हैं? क्या आप जानते हैं कि आर. के. नारायण (रासीपुरम कृष्णस्वामी अय्यर नारायणस्वामी) ने 1938 में अपने उपन्यास ‘द डार्क रूम’ में ऐसी ही एक कहानी बुनी थी. सावित्री के पति को भी एक अन्य कामकाजी महिला आकर्षित करती है. मेलजोल बढ़ता है. निकटता बढ़ने लगती है. हालांकि, दैनिक जीवन की छोटी-मोटी घटनाओं को समाहित करती ये कहानी विवाहेत्तर सम्बंधों से उपजी त्रासदी को ही सूक्ष्म रूप में प्रदर्शित करती है. पति और कामकाजी महिला के संबंधों से आहत होकर सावित्री को घर भी छोड़ना पड़ जाता है. वह परिस्थितियों से लड़ती है. लेकिन अंतत: सामंजस्य स्थापित कर लेती है.

कहने का आशय ये है कि विवाहेत्तर संबंध नये नहीं हैं. आर. के. नारायण जैसे लेखकों ने उस दौर में इसे रेखांकित करने का प्रयास किया जब बाल-विवाह आम बात थी. जब तमाम कुरीतियों को लेकर जनजागरण अभियान तेजी से चलाया जा रहा था. आर. के. नारायण के लेखन में छोटी-छोटी घटनाएं हैं. घटनाओं के विवरण हैं. भावनाएं हैं और भावनाओं के बिंब हैं. भावनाओं की पूर्णता के चित्र हैं. नारायण के लेखन से गुजरते हुए आपको लेखकीय कुशलता के कई उदाहरण देखने को मिल जाते हैं.

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आर. के. नारायण की गिनती देश के तीन सबसे महान उपन्यासकारों में होती है. भारत में अंग्रेजी साहित्य लेखन में उनका नाम मुल्कराज आनंद और राजा राव के साथ ‘बृहत्रयी’ के रूप में प्रसिद्ध है. उन्होंने विशेष रूप से उपन्यास और कहानियां लिखी हैं, जिनमें इंसानों के उत्थान और पतन की ज्यादा चर्चा की गई है.

‘मालगुडी डेज’ की चर्चा के बिना उनका रचना संसार अव्यक्त जैसा ही रह जाएगा. उनकी कई कहानियों, पुस्तकों में ‘मालगुडी’ की चर्चा देखने को मिलती है. सन् 1942 में इसी नाम से उनका पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ था. मालगुडी की कहानियां (मालगुडी डेज).

आर. के. नारायण मालगुडी की बातें ऐसे बताते हैं जैसे वह कोई शहर हो. वो आपका शहर भी हो सकता है. जबकि यह पूरी तरह से काल्पनिक है. काल्पनिक मालगुडी को लेकर लेखक की टिप्पणी है-“मैंने इस संकलन का नाम मालगुडी कस्बे पर दिया है, क्योंकि इससे इसे एक भौगोलिक व्यक्तित्व मिल जाता है. लोग अक्सर पूछते हैं- लेकिन यह मालगुडी है कहां? मैं यही कहता हूं कि यह काल्पनिक नाम है और दुनिया के किसी भी नक्शे में इसे ढूंढा नहीं जा सकता (यद्दपि शिकागो विश्वविद्यालय ने एक साहित्यिक एटलस प्रकाशित किया है जिसमें भारत का नक्शा बनाकर उसमें मालगुडी को भी दिखा दिया गया है. अगर मैं कहूं कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएंगे”.

1958 में छपे उपन्यास ‘गाइड’ को आरके नारायण की सर्वश्रेष्ठ रचना कहा जाता है. ऐसी व्यंग्य दृष्टि उनकी किसी और रचना में देखने को नहीं मिलती ना ही किसी और रचना में इतने नैतिक सरोकारों का पाठ ही पढ़ाया गया है. ‘गाइड’ के लिए आरके नारायण को 1960 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

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आलोचकों का मानना है कि आरके नारायण की बेहतरीन रचनाएं आजादी के बाद ही देखने को मिलती हैं. खास तौर से 1952 से 1962 के बीच का समय. इस कालखंड में लेखक के उपन्यासों की त्रयी आयी. तीनों ही उपन्यास जबरदस्त चर्चा में रहे. ‘द फाइनेंसियल एक्सपर्ट’ (1952), ‘गाइड’ (1958) और ‘मालगुडी का आदमखोर’ (द मैनइटर ऑफ मालगुडी) 1962.

10 अक्टूबर 1906 को आरके नारायण का जन्म हुआ था. नारायण के पिता तमिल अध्यापक थे. आरके नारायण ने भी बहुत थोड़े समय के लिए अध्यापक तथा पत्रकार के रूप में कार्य किया. जल्द ही इन पेशों से मुक्ति पाकर उन्होंने अपना सारा जीवन लेखन में ही लगाया. भारतीय साहित्य में उनके योगदान के लिए 1989 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया. साल 2000 में, उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया. आपने व्यवस्था पर चोट करने वाले आरके लक्ष्मण के तमाम कार्टून देखे होंगे. वे आरके नारायण के भाई थे.

Tags: Books, Hindi Literature, Hindi Writer, Literature

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Author: traffictail

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